मिथुन संक्रांति का महत्व

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By sadhana

मिथुन संक्रांति का महत्व

संक्रांति तिथियाँ पंचांग में महत्वपूर्ण होती हैं क्योंकि वे तिथियाँ हैं जिनके आधार पर दिन, मास, और ऋतुओं की गणना और पंचांग का निर्माण किया जाता है।

मिथुन संक्रांति, हिन्दू पंचांग में एक महत्वपूर्ण तिथि है जो ज्योतिष और पौराणिक विज्ञान में महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह संक्रांति ज्योतिषीय वृहद् जातक (जन्मकुंडली) के लिए महत्वपूर्ण होती है।

मिथुन संक्रांति क्या है?

मिथुन संक्रांति उस समय को दर्शाती है जब सूर्य अपनी गति को प्रतिबद्ध करके मेष राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश करता है। यह तारीखीय परिवर्तन हर साल 14 जून और 15 जून के बीच घटता है, जब सूर्य का यह राशि परिवर्तन होता है।

मिथुन संक्रांति को ऋतुराज कहा जाता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत के रूप में मानी जाती है। इस अवसर पर, लोग मिथुन संक्रांति महोत्सव मनाते हैं, मंदिर में पूजा करते हैं, स्नान करते हैं और धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं।

मिथुन संक्रांति को ज्योतिषीय दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण समय माना जाता है, जहां ग्रहों की स्थिति और आधिकारिक घटनाओं का प्रभाव ज्योतिषीय विद्या के अनुसार अध्ययन किया जाता है।

महत्व

मिथुन संक्रांति का महत्व हिन्दू पंचांग और ज्योतिष शास्त्र में प्रमुखता से माना जाता है। इस संक्रांति का महत्व विभिन्न पहलुओं में देखा जा सकता है:

ज्योतिष में महत्व

मिथुन संक्रांति ज्योतिषीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होती है। इसे जन्मकुंडली में राशि और ग्रहों के लिए महत्वपूर्ण गणक माना जाता है। इस संक्रांति पर राशि और ग्रहों के स्थान में परिवर्तन होता है और यह माना जाता है कि इससे नये ऊर्जा और प्रभाव प्राप्त होते हैं।

मौसम और ऋतु का परिवर्तन

मिथुन संक्रांति से ग्रीष्म ऋतु से मानसून ऋतु की शुरुआत होती है। यह समय बारिश, गर्मी और वातावरण में परिवर्तन का संकेत देता है। इस अवसर पर लोग ऋतुराज के रूप में मिथुन संक्रांति के आगमन को मनाते हैं।

कृषि और फसलों का महत्व

मिथुन संक्रांति का महत्व खेती और किसानी में भी होता है। इस समय नई फसलें बोई जाती हैं और कृषि से जुड़ी गतिविधियां शुरू होती हैं। यह एक महत्वपूर्ण अवसर होता है। जब खेती के लिए नयी उम्मीदें और संभावनाएं पैदा होती हैं।

धार्मिक आयोजन

मिथुन संक्रांति को धार्मिक रूप से मनाया जाता है। इस दिन लोग मंदिरों में पूजा करते हैं, स्नान करते हैं और धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं। इसका महत्व है क्योंकि इसे मिथुन संक्रांति के माध्यम से मान्यता और धार्मिकता के साथ जोड़ा जाता है।

इस समय में धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में संलग्न होते हैं ताकि वे नये ऊर्जा और साधना के साथ एक नये आरंभ को स्वीकार कर सकें।

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