जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा इतिहास और इससे जुड़े कुछ अनसुने रहस्य

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By sadhana

जगन्नाथ रथ यात्रा इतिहास: Jagannath puri Rath Yatra: क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा?

जगन्नाथ रथ यात्रा, जिसे जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। यह भारतीय राज्य ओडिशा के पुरी शहर में हर साल आयोजित होने वाला एक प्रमुख धार्मिक उत्सव है। यह उत्सव जगन्नाथ मंदिर के समीप स्थित जगन्नाथ पुरी मंदिर से शुरू होता है।

इस यात्रा का इतिहास बहुत पुराना है और इसे हिन्दू मिथकों और पुराणों से जोड़ा जाता है। संभवतः यह यात्रा लगभग 10वीं शताब्दी से प्रारंभ हुई थी, जब जगन्नाथ मंदिर का निर्माण हुआ था। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य है जगन्नाथ मंदिर के दर्शनार्थी को दिव्य विग्रहों के समीप ले जाना है, जिनमें भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ हैं।

रथ यात्रा में तीन रथ होते हैं – नन्दीघोषा, तलाध्वजा और देवदलना। ये रथ अलग-अलग रंगों से सजाए जाते हैं और उन्हें रथयात्रा के दौरान मुख्य बाजार के साथीदार और दर्शनार्थी खींचते हैं। इन रथों को मंदिर से निकालकर लोग उन्हें एक विशेष स्थान पर खींचते हैं, जिसे गुंडिचा मंदिर के रूप में जाना जाता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा में तीन विभिन्न रथ होते हैं, जिन्हें श्री मंदिर के प्रांगण में तैयार किया जाता है। ये तीन रथ हैं:

नंदीघोष रथ (बलभद्र रथ)

यह रथ सबसे ऊँचा होता है और इसमें भगवान जगन्नाथ के बड़े भाई बलभद्र की मूर्ति स्थापित होती है। इसका रंग लाल होता है।

तालध्वज रथ (सुभद्रा रथ)

यह रथ मध्यम ऊँचाई का होता है और इसमें भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा की मूर्ति स्थापित होती है। इसका रंग पीला होता है।

पादमहारथ (जगन्नाथ रथ)

यह रथ सबसे नीचा होता है और इसमें भगवान जगन्नाथ की मूर्ति स्थापित होती है। इसका रंग नीला होता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा में लाखों लोग भाग लेते हैं और इसे बड़े धूमधाम और आनंद के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान, लोग गान और नृत्य करते हैं, भक्ति भाव से भजन गाते हैं और भगवान की भक्ति करते हैं। इसके अलावा, यात्रा के दौरान लोग पुरी शहर में विभिन्न प्रकार की परंपरागत नृत्य, संगीत और कला प्रदर्शनी का आयोजन करते हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण उत्सवों में से एक है और यह ओडिशा राज्य की संस्कृति, तांत्रिक संस्कृति और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस यात्रा का पथ पुरी शहर की सड़कों पर चलता है और अपने अंतिम स्थान के लिए गुंडिचा मंदिर तक पहुंचती है। यहां पर रथों की देखभाल की जाती है और वहां से यात्रा का आयोजन समाप्त होता है।

ओडिशा सरकार द्वारा संचालित होती है पूजा

पुरी जगन्नाथ मंदिर राजा या महाराजा से संपर्क नहीं रखता है। पुरी जगन्नाथ मंदिर का प्रबंध एवं संचालन ओडिशा सरकार द्वारा नियंत्रित होता है। मंदिर का प्रमुख पुरोहित रहता है और वहां के प्रशासनिक कार्य और आयोजनों की जिम्मेदारी मंदिर प्रशासन को सौंपी जाती है।

पुरी जगन्नाथ मंदिर एक सांस्कृतिक स्थल है जिसका प्रशासन संस्कृति, पौराणिक मान्यताओं और स्थानीय प्रथाओं पर आधारित है। मंदिर में पूजा-अर्चना, धार्मिक कार्यक्रम और उत्सवों का आयोजन होता है जिसमें स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी और पुरोहित समिति की भूमिका होती है।

इसके अलावा, पुरी जगन्नाथ मंदिर का प्रबंध एवं संरक्षण के लिए एक विशेष संगठन है, जिसे “श्री मंदिर प्रबंधन समिति” के नाम से जाना जाता है। यह समिति धार्मिक, प्रशासनिक और वित्तीय मामलों के लिए जिम्मेदार होती है और मंदिर की देखभाल, उन्नयन और पर्यटन को सुनिश्चित करती है।

इस प्रकार, पुरी जगन्नाथ मंदिर का संपर्क और प्रबंध संबंधी दायित्व स्थानीय प्रशासनिक और सांस्कृतिक संस्थाओं को सौंपा जाता है, और यह राजा या महाराजाओं से सीधे संपर्कित नहीं होता है।

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