संकष्ट चतुर्थी व्रत करने की विधि
संकष्ट चतुर्थी एक हिन्दू व्रत है जो हर मासिक चतुर्थी को मनाया जाता है, यानी हर माह के चतुर्थी तिथि पर। इस व्रत को भगवान गणेश को समर्पित किया जाता है और यह चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।
संकष्ट चतुर्थी का उद्देश्य गणेश जी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। इस व्रत का महत्व संकट और समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने में माना जाता है। लोग इस दिन गणेश जी की पूजा-अर्चना करते हैं, उनके मंत्रों का जाप करते हैं, और उनसे आशीर्वाद मांगते हैं।
संकष्ट चतुर्थी व्रत की विधि निम्नलिखित रूप से होती है:
व्रत की तैयारी
संकष्ट चतुर्थी के दिन व्रत करने से पहले, सुबह जल्दी उठें और नहाएं। व्रत के लिए पूर्णतया साफ-सफाई और पवित्रता का ध्यान रखें।
व्रत का आचरण
व्रत का आरंभ संध्या पूजा के समय होता है। इसके लिए, एक प्राचीन गणेश मंदिर या पूजा स्थल में जाएं और गणेश जी की मूर्ति के समीप जैसे फूल, अक्षत, धूप, दीप आदि को तैयार करें।
पूजा अर्चना
गणेश जी की मूर्ति का पूजन करें। गणेश चालीसा, आरती और मंत्रों का जाप करें। भक्ति और श्रद्धा के साथ गणेश जी से आशीर्वाद मांगें।
व्रत कथा का पाठ
संकष्ट चतुर्थी कथा को पूरी श्रद्धा और ध्यान के साथ पढ़ें। यह कथा आपके मन में उत्कर्ष और आशीर्वाद का भाव जगाएगी।
व्रत के नियमों का पालन
व्रत के दौरान आपको झूठ बोलना, और किसी को नुकसान पहुंचाने से बचना है।व्रत के दौरान, झूठ बोलने से व्रती व्यक्ति अपनी आत्मा को दुष्प्रभावित करता है और उसे अपवित्र बनाता है। अतः, व्रत के समय झूठ बोलने से बचने के लिए व्रती व्यक्ति को सत्य और ईमानदारी का पालन करना चाहिए ताकि उनका व्रत सार्थक और प्रभावशाली हो सके।
पूजा समाप्ति
पूजा के बाद, आरती करें और गणेश जी को प्रणाम करें। अंतिम रूप से, व्रत करने के लिए गणेश जी का आभार व्यक्त करें और उनसे आशीर्वाद मांगें।
संकष्ट चतुर्थी व्रत का पालन करते समय श्रद्धा, विश्वास, और निष्ठा के साथ करें। व्रत का उचित आचरण करने से आप अपने जीवन में समृद्धि, सुख, और संकटों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
झूठ बोलना मनुष्य की असत्यता और निष्ठाहीनता का प्रतीक होता है। व्रत के समय ज्ञान, निष्ठा और सत्य का महत्व बढ़ जाता है। व्रती व्यक्ति को अपने वचनों को सत्य और ईमानदारी से रखना चाहिए, क्योंकि यह उनकी आध्यात्मिक एवं मनोवैज्ञानिक उन्नति को बढ़ाता है।